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Wednesday, August 31, 2011

कैसे बिकता है प्रतिबंधित कीटनाशक?

आपसे बेहतर इस तथ्य को कौन समझ सकता है कि खेती के मामले में जहर पर हमारी निर्भरता कितनी बढ़ चुकि है। फसल उगाने से पहले खेत में जहर डालना शुरू करते हैं तो भण्डारण तक नहीं रूकते। बात यहीं खत्म हो जाती तो गनीमत था, अब तो फल-सब्जियों को पकाने और देर तक ताजा रखने के लिए भी जहर का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। एक आश्चर्यजनक सच्चाई यह भी है कि दुनिया भर में प्रतिबंधित कीटनाशकों को भारत में खुलेआम बेचा और प्रयोग किया जा रहा है। फल-सब्जियों पर इनके प्रयोग से न केवल कैंसर जैसी जान लेवा बीमारियों को सीधे न्योता दिया जा रहा है, बल्कि अल्सर, चर्म रोग, हृदय रोग, रक्तचाप जैसी बीमारी भी तेजी से फैल रही हैं।
फल-सब्जियों पर जहर के प्रयोग को रोकने के लिए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली अब तक 27 से ज्यादा कीटनाशकों पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा चुकी है। इसके बावजूद पूरे देश में ऐसे कीटनाशकों की बिक्री बेरोकटोक जारी है। हालांकि राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देशभर के कृषि व फल वैज्ञानिकों को इन प्रतिबंधित दवाओं की सूची उपलब्ध करावा दी है। परिषद ने यह जिम्मेवारी कृषि वैज्ञानिकों को सौंपी हे कि वे किसानों को ऐसे कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले नुकसान से अगाह करें।
राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 27 कीटनाशकों व कीटनाशक मिश्रण को जिनका प्रयोग भारत में होता है को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा दो कीटनाशक ऐसे जिनका भारत में उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है, पर इनका उत्पादन निर्यात के लिए किया जा सकता है। चार कीटनाशक मिश्रण ऐसे भी हैं जिनके उपयोग, उत्पादन व आयात को भी प्रतिबंधित किया गया है। सात कीटनाशकों को कंपनियों अथवा निर्माताओं द्वारा बाजार तक पहुंचने के पहले ही हानिकारक मानकर वापस ले लिया गया तथा 18 कीटनाशकों का तो निबंधन करने तक से मना कर दिया गया है। इसके अलावा 13 कीटनाशक वो हैं जिन्हें देश में कम इस्तेमाल करने की नसीहत दी गई है।
आपकी सुविधा के लिए उन 27 कीटनाशकों व कीटनाशक मिश्रण की सूची प्रकाशित है जिनके प्रयोग पर देश में प्रतिबंध लगाया गया है। इनमें एल्ड्रिन, बेंजीन हेक्साक्लोराइड, कैल्शियम साइनाइड, क्लोरडेन, कापर एसीटोरसेनाइट, ब्रोमोक्लोरोप्रोप्रेन, एन्ड्रिन, इथाइल मरकरी क्लोराइड, इथाइल पैराथियान, हेप्टाक्लोर, मेनाजोन, नाइट्रोफेन, पांराक्वेट डाईमिथाइल सल्फेट, पेंटाक्लोरो नाइट्रोबेंजीन, पेंटाक्लोरोकेनोल, फिनायल मरकरी एसिटेट, सोडियम मैथेन अर्सोनेट, टेट्राडिफोन, टांक्साफेन ,एल्डीकार्ब, क्लोरोबंजिलेट, डाइब्रोमाइड, ट्राईक्लोरोएसिटिक एसिड, मेटोक्सारांन, क्लोरोकेनविनकांस है।
आंशिक प्रतिबंधित रसायन -मिथइल पैराथियान दो प्रतिशत धूल या 50 प्रतिशत ईसी फल व सब्जियों पर, मिथाक्सी इथाइल मर्करी क्लोराइड का प्रयोग आलू और गन्ने के बीज के लिए प्रयोग किया जाएगा, शेष पर प्रतिबंध, मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत सब्जियों पर और सोडियम साइनाइड केवल कपास के गूलर के लिए प्रयोग होगा, वह भी विशेषज्ञ की मौजूदगी में। डीटीटी सभी फसलों पर प्रतिबंधित, एल्यूमीनियमफास्फाइड 56 प्रतिशत के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध, आल्डिन बेंजिन हैक्सा क्लोराइड, केल्सियम साइनाइड, क्लोरोडेन, डाइब्रोमा प्रोपेन, इन्डिन 20 ईसी, इथाइल मर्करी क्लोराइड, हप्टा क्लोर, मेनाजोन नाइटोफेन, क्लोरोबेन्जीलेट, केप्टाफाल 80 फीसदी चूर्ण, मैथेमिल 125 प्रतिशत, एल फास्फोमिडान 85 प्रतिशत, कार्बोफ्यूरान 50 प्रतिशत के अलावा लिण्डेन और इण्डोसल्फान पूरी तरह से प्रतिबंधित।
धड़ल्ले से बिक रहे प्रतिबंधित कीटनाशक
कृषि विशेषज्ञों से मिली जानकारी अनुसार बिटाबैक्स नामक दवाई अमेरिका में प्रतिबंधित है और वहां से तैयार हो कर भारत में आ रही है। इसका प्रयोग यहां गेहूं में कीड़ा न लगने के लिए किया जाता है।  प्रतिबंध के बावजूद कुछ रसायनों की बिक्री नाम बदलकर धड़ल्ले से हो रही है। इनमें से कुछ रसायन ऐसे हैं जो तत्काल और कुछ लंबे समय बाद अपना असर दिखाते हैं। जानते हैं उनके टेक्निकल नाम और वो नाम जिससे ये रसायन बाजार में बेचे जा रहे-
1. इथाइल मर्करी क्लोराइड--एगिसान, बैगलाल-6
2. मेथोमिल--रनेट, लैनेट, क्रिनेट
3. कार्बोफयूरॉन--प्यूराडान, अनुक्यूरान, डायफ्यूरॉन, सूमो, प्यूरी
4. फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार--घन 10जी, अनुमेट फोरिल, फोरोटाक्स, बुकेर जी, पैराटाक्स, बेज इनमेट, वीरफोर
5. लिण्डेन गामा--लिसटाफ, देवीगामा, लिनडस्ट, केनोडेन, रसायन लिण्डेन, हिलफाल कैल्थेन, फलश कमाण्डो मेगाएडा
6. मिथाइल पैराथियान--पेरासिड 50, थानुमार, मेटासिड, फामिडाल चूर्ण, पैराटॉफ, धानुडाल, क्लोफॉस, क्लोरिसिड
7. मोनो क्रोटोफॉस-- विलकॉस, मोनोसिड, गार्जियन, मोनोधन, बलवान मनोहर, रसायन फॉस, लूफास, मोनोसिल आदि।
क्या कहता है कानून?
भारत सरकार ने प्रतिबंधित व निषिद्ध रसायनों की बिक्री रोकने के लिए सख्त कानून बनाएं हैं। कीटनाशक एक्ट 1968 की धारा 29 के तहत ऐसे रसायन बेचने वालों को दस से पचास हजार रुपये तक का जुर्माना या दो साल की कैद हो सकती है।

Tuesday, August 30, 2011

किस कीमत पर चाहिए फसलें?

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में कीटनाशक  एंडोसल्फान की विक्रय और उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश केंद्र और राज्य सरकारों को जारी कर दिए हैं। दुनिया के लगभग 82 देशों में इस पर पूर्ण प्रतिबंध है। एक अकेले एंडोसल्फान की क्या बात करें, तमाम कीटनाशकों का नासमझी भरा प्रयोग जीव-जंतुओं और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। हमें ज्यादा कमाई के लिए ज्यादा उत्पादन चाहिए। ज्यादा उत्पादन के लिए हम कितना भी खर्चा कर सकते हैं, जेब में न हो तो कर्ज लेकर  भी कर सकते हैं। हमारे खेत, फसल और किसान पूरी तरह से घातक रसायनों में ही डूबे हुए हैं। हमारे यहां एक हेक्टेयर में 600 से 800 किलोग्राम रासायनिक उर्वरक तथा 7 से 10 लीटर रासायनिक कीटनाशक छिड़के जा रहे है। रसायनों  का  भारत में औसत उपयोग 94.5 किलो है, जबकि पंजाब 209.60 किलो और आंध्रप्रदेश 219.48 तथा तमिलनाडु 186.68 किलो रसायनों का छिड़काव करते हैं।
दरअसल ये शुरूआत तो 70 के दशक से हरित क्रांति नाम पर हुई, जिसने हमें उन्नत बीज, रासायनिक पदार्थ और ट्रेक्टर-थ्रेशर जैसी मशीन आधारित तकनीकें दी पर भारतीय किसान और सरकार से यह निर्णय करने का अधिकार छीन लिया कि वह कैसे खेती करना चाहते हैं। इस तकनीकि उन्नति ने किसानों को उनकी सालाना आय से चार गुना ज्यादा कर्जदार कर दिया है और उसके खेतों का उपजाऊपन भी छीन लिया है। आज किसान जिस स्थिति में पहुंच गया है उसे खेती का संकटकाल कहा जा सकता है। आज वह पारम्परिक,  कम ऊर्वरक, कम कीटनाशक और कम पानी वाली फसलों को छोड़कर नकद फसलों  के मकडज़ाल में फस गया है, इसका एक प्रमाण तो यह है कि जहां 1991 में किसान पर औसत कर्ज ढाई हजार रूपये था वह आज बढ़कर 35 हजार रूपये के पार जा चुका है।
सवाल यह है कि आखिर हमें किस कीमत पर फसलें चाहिएं? अपनी जान की कीमत पर या बैंक और साहूकारों के यहां खुद को गिरवी रख कर? ईमानदारी भरा जवाब तो यह है कि हमें और हमारे कृषि वैज्ञानिकों तथा खेती के लिए योजनाएं बनाती सरकार किसी को भी नहीं मालूम कि होना क्या चाहिए। कीटनाशकों का इस्तेमाल बिना विकल्पों के छोड़ा नहीं जा सकता और जो विकल्प हैं वे या तो आजमाए हुए नहीं हैं या भरोसे के  लायक नहीं हैं। किसान आज इन स्थितियों से बाहर निकलना भी चाहे तो आर्थिक परेशानियां, सरकारी नीतियां और बाजार का दबाव उसे निकलने नहीं देगा। एक राजस्थानी कहावत की अर्थ यह है कि विधवा तो किसी तरह अपना समय गुजार भी ले पर समाज के दुश्चरित्र लोग उसे ऐसा करने नहीं देते।

-भू-मीत, १५ सितम्बर-१६ अक्तूबर का सम्पादकीय

Friday, August 12, 2011

विकलांग बच्चों के परिजनों हेतु विशेष बीमा योजना


क्या है इस योजनाओं में
ये बीमा योजनाएं केवल उन लोगों के लिए है,जिनके बच्चे विकलांगता के शिकार हैं और जिन्हें जीवन भर विशेष देखभाल की जरूरत पड़ेगी। ऐसे बच्चों के माता-पिता को हमेशा यह चिंता भी सताती रहती है कि उनके बाद इन बच्चों का देखभाल कौन करेगा। ऐसे लोगों के लिए ये बीमा योजनाएं एकदम उपयुक्त है। दरअसल ये सभी ग्रूप बीमा योजनाएं है जिनके तहत ऑटिज्म (आत्मकेन्द्रित), सेरेब्रल पॉल्सी (मस्तिष्क पक्षाघात), मेंटली रिटार्डिड (मंदबुद्धि) और बहु विकलांगता से ग्रसित बच्चों के माता-पिता, अभिभावक और उनका पालन-पोषण करने वाले लोगों का बीमा किया जाता है। उल्लेखनीय है कि देश में इस समय इस तरह की विकलांगता से ग्रसित करीब 22लाख लोग हैं। अन्य बीमा कंपनियों के पास भी इस तरह की पॉलिसी उपलब्ध हैं, लेकिन वे नेशनल ट्रस्ट की इन योजनाओं के मुकाबले में काफी महंगी हैं, जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति नहीं खरीद सकता।
योजना का लाभ क्या हैं?
अस्मिता योजना के तहत विशेष देखभाल की जरूरत वाले विकलांग बच्चों और उनके माता-पिता या अभिभवकों का एक से दस लाख रुपए का जीवन बीमा किया जाता है। योजना के तहत केवल एक ही व्यक्ति को फायदा मिल सकता है। एक बच्चे के साथ केवल माता-पिता या अभिभवक में से किसी एक को ही सम्मिलित किया जाएगा। दुर्भाग्य से किसी दम्पती के दो बच्चे विकलांगता से पीडि़त हों तो वे दो पॉलिसी ले सकते हैं। अगर बीमित व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटनावश या स्वत:हो जाती है तो बीमा कम्पनी बीमा राशि के रुपए नेशनल ट्रस्ट को देगी,जो कि बीमा के तहत नॉमिनी भी है। आत्महत्या की स्थिति में बीमा राशि नहीं मिलती। ट्रस्ट कुछ विशेष मामलों में बीमा राशि का पैसा अपने पास ही रखता है, ताकि उसके ब्याज से बच्चे की सही से देखभाल की जा सके। नेशनल ट्रस्ट इन पैसों को उन परिजनों को किस्तों में भी दे सकता है, जो उस बच्चे की देखभाल माता-पिता के गुजरने के बाद करेंगे। एक बार जब इस तरह की योजना के तहत किसी ने फायदा उठा लिया हो, तो वह दोबारा उसे योजना के तहत लाभ नहीं ले सकता। इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए माता-पिता या अभिभावक की न्यूनतम आयु 18साल होनी चाहिए और पॉलिसी नवीनीकरण की आयु 59 साल।
कैसे लें यह बीमा?
इन बीमा योजनाओं को लेने के लिए विकलांग बच्चों के माता-पिता या अभिभावक को उन संस्थाओं में आवेदन करना होगा, जो नेशनल ट्रस्ट के तहत पंजीकृत हैं। संस्थाओं का पता और आवेदन फार्म ट्रस्ट की साइट http://www.thenationaltrust.in/ से डाउनलोड किया जा सकता है। ट्रस्ट से पंजीकृत संस्था लोगों के आवेदन करने की प्रक्रिया को पूरा करने से लेकर भविष्य में किसी अनहोनी की स्थिति में क्लेम दिलवाने तक का कार्य करेगी।
आवश्यक प्रपत्र
आवेदन फार्म के साथ आवेदकों को बच्चे का विकलांगता प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, माता-पिता या अभिभवक के साथ विकलांग बच्चे का फोटो और कानूनी अभिभावक होने का प्रमाण संलग्न करना होगा। माता-पिता को अभिभावक प्रमाण पत्र संलग्न करने की आवश्यकता नहीं है। इस आवेदन के साथ किस्त राशि का ट्रस्ट के नाम देय एक चैक भी संलग्र करना होता है। बीमा राशि के भुगतान के समय क्लेम प्रपत्र, मृत्यु प्रमाण-पत्र तथा दुर्घटना मृत्यु होने पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भेजनी होती है। बीमा राशि का भुगतान पांच सप्ताह में हो जाता है।
कितनी होगी किस्त?
इस योजना को भी बाकी बीमा योजनाओं की तरह छोटी उम्र में ही लेने पर ज्यादा लाभ है। निरामय योजना में 250रूपए एक लाख के बीमें पर लिए जाते हैं। फिलहाल बाजाज एलियंस की बीमा स्कीम अस्मिता किन्हीं कारणों से कार्य नहीं कर रही है। अधिक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र में बीमा कम्पनी या नेशनल ट्रस्ट के सहयोगियों से सम्पर्क कर सकते हैं।
सम्पर्कद नेशनल ट्रस्ट
ऑटिज्म (आत्मक केन्द्रित), सेरेब्रल पॉल्सी (मस्तिष्क पक्षाघात), मेंटली रिटार्डिड (मंदबुद्धि) और बहु विकलांगता से ग्रसित लोगों के कल्याण हेतु संस्था।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार।
16-बी, बड़ा बाजार मार्ग, ओल्ड राजेन्द्र नगर,
नई दिल्ली-110060,
फोन: 011-43187878 फैक्स : 011-43187880

या

अर्थ आस्था बस्ती विकास केन्द्र
बालमुकन्द खण्ड, गिरीनगर, कालकाजी, नई दिल्ली-19
फोन नं: 011-26449029, 26227720
टॉल फ्री नं. : 1800-11-6800
e-mail : info@asthaindia.inasthaindia@rediffmail.com
web :    http://www.asthaindia.in/