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Friday, December 2, 2011

बाग की बारहखड़ी

हमारे देश के आम किसानों की धारणा है कि फलों की खेती फायदे का सौदा नहीं है, तभी तो हमारे देश में कुल खेती में बागबानी 4 प्रतिशत से भी कम है। इस उदासीनता का कारण जानने से पहले इन दो प्रश्नों का उत्तर जानने का कौशिश करें: 1-क्या बाग लगाना वास्तव में घाटे का घर है? 2-या बाग लगाने वालों में ही कुछ कमियां हैं?
पहले खोजते हैं दूसरे सवाल का जवाब। बाग लगाने से पहले अकसर लोग इस बात पर विचार ही नहीं करते कि किस मिट्टी, किस जलवायु और किस पानी के साथ किस किस्म के फलदार पेड़ लगाने चाहिए। वे यह भी ध्यान नहीं देते कि फल विशेष के पौधों में दूरी कितनी होनी चाहिए। बिना भूमि को सुधारे, मिट्टी की जांच करवाए फलों के पेड़-पौघे लगा दिए जाते हैं। एक बार बाग लगा देने के बाद वे उसकी देखभाल पर ध्यान भी नहीं देते। समय पर खाद और दवा पानी नहीं दिया जाता। इन्हीं सब कारणों से एक बाग घाटे का सौदा बन जाता है, दूसरी तरफ इन बातों को ध्यान में रखते हुए उचित ढंग से बाग लगाया जाए और ठीक से उसकी देखभाल करने वाले किसान को कभी नुकसान नहीं होता। अत: हमारा पहला सवाल ही गलत है। इस गलत सवाल का सही जवाब यह है कि बाग लगाना कभी घाटे का घर नहीं होता। आइए जानते हैं एक कामयाब और लाभदायक बाग लगाने के लिए किन बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है।
स्थान चुनते समय
हमेशा ऐसी ज़मीन बाग लगाने के लिए चुनें जो उपजाऊ हो। कंकड़ पत्थरवाली और ऊँची-नीची उबड़-खाबड़ ज़मीन बाग लगाने के लिए उपयुक्त नहीं होती। क्षारवाली, जिसमें नमक ज्यादा हों, और रेतीली ज़मीन भी बाग लगाने के लिए उचित नहीं होती। हल्की दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, सब प्रकार की फसलों के लिए उत्तम होती है।
सिंचाई का समुचित प्रबंध होना भी जरूरी है केवल नहर के भरोसे बड़ा बाग लगाना सही निर्णय नहीं है। जरूरत के समय अगर नहर से पानी न मिले तो बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए बाग में कम से कम मीठे पानी का एक कुआँ होना बेहद जरूरी है। यदि 15 एकड़ का बाग लगाना हो और सिंचाई का प्रबंध केवल छ: एकड़ का हो तो पाँच पाँच एकड़ करके तीन या चार बार में पानी लगाना चाहिए, क्योंकि जब पेड़-पौधे बड़े और पुराने हो जाते हैं, तब उन्हें धरातली सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती, वे भूमिगत जल भंडार से अपनी जरूरत का अधिकांश पानी खुद-ब-खुद खींच लेते हैं।
बाग हमेशा सड़क, परिवहन के लिए सुविधाजनक स्थान या रेलवे स्टेशन के पास लगाना चाहिए, ताकि उसकी उपज समय पर बाजार या मंडी में बिकने के लिए पहुँच सके। शहर से बहुत दूर गाँव के अंदर बाग लगाने से फसलों को मंडी तक पहुँचाने में बहुत परेशानी होती है और खर्चा तथा समय भी अधिक लगता है। अधिक समय लगने के कारण फल बाजार तक पहुंचते पहुंचते खराब होने लगते हैं। जहाँ तक हो, बाग किसी जंगल के पास नहीं लगाना चाहिए क्योंकि जंगल पास में होने के कारण नील गाय, सुअर, हिरन और चिडिय़ों आदि फसल को नष्ट करते हैं। इससे बाग की रखवाली पर अधिक खर्चा भी होता है। बाग लगाने से पहले एक बात और ध्यान में रखें कि समय पर स्थानीय मजदूर भी मिल सकें।
किस्म चुनते समय

बाग में लगाए जाने वाले वाली फसल की किस्मों का चुनाव करने के लिए निम्र बातों को ध्यान रखना चाहिए।
(1) फसल की किस्मों का चुनाव हमेशा भूमि के अनुसार होना चाहिए। कम उपजाऊ और पत्थरीली भूमि में आम नहीं लगाना चाहिए, वहां अमरूद जैसी कठोर किस्में ही लगानी चाहिए। इसी प्रकार थोड़ी रेह वाली और खराब ज़मीन में लसूड़ा, बेर, आँवला आदि के पेड़ ही लगाए जा सकते हैं। पानी ठहरनेवाले स्थान पर संतरा, माल्टा, नींबू आदि नहीं लगाने चाहिए, क्योंकि पानी के ठहरने से पेड़ों की जड़ें गलकर खराब हो जाती हैं। ऐसी जगह पर भी अमरूद किसी हद तक कामयाब हो सकता है।
(2) किस्मों का चुनाव करते समय उस स्थान की जलवायु को भी ध्यान में रखना चाहिए। ठडें इलाकों में सेब, खूबानी, नाशपाती आदि, और गर्म मैदानी भाग में केला, पपीता, आम, अमरूद, संतरा आदि लगाए जाते हैं तथा अधिक वर्षावाले क्षेत्रों में अंगूर नहीं लगता।
(3) फल की वे ही किस्में लगानी चाहिएं जिसकी माँग बाजार में हो और भाव भी अच्छे मिलने की उम्मीद हो। सस्ते और हर जगह लगाए जा सकने वाली किस्में ज्यादा फायदा नहीं देती। किस्म का चुनाव करते समय उद्यान विभाग के अधिकारियों से भी सलाह लेनी फायदेमंद रहती है।
बाग की तैयारी करते समय
जिस ज़मीन पर बाग लगाना है यदि उसमें पहले से खेती हो रही है, तो उसे ठीक करने में अधिक कठिनाई नहीं होती। भूमि कैसी है, यह जानने के लिए मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए। उसके बाद ज़मीन उगे फालतू झाड़-झंखाड़ की सफाई करनी चाहिए। बबूल आदि जंगली पेड़ों और झाडिय़ों को जड़ सहित उखाड़ देना चाहिए, केवल ऊपरी हिस्सा काट देने से ये दोबारा बढ़ जाती हैं। एक दो छायादार पेड़ रहने-बैठने के स्थान पर, छोड़े भी जा सकते हैं। इस सफाई के बाद भूमि की सतह को समतल करें। यदि सतह समतल नहीं हो तो सिंचाई करने में असुविधा भी होती है और सब पेड़ों-पौघों को समान मात्रा में पानी नहीं पहुंचता। बरसात का पानी भी नीचे स्थानों में भर जाता है और बा$ग को नुकसान होता है। अत: भूमि का स्तर सिंचाई की सुविधा के अनुसार करना चाहिए।
यदि सारी ज़मीन को एक सा चौरस करना संभव न हो, तो उसे दो या अधिक भागों में बाँटकर हर भाग को अलग-अलग समतल कर लेना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में, जहाँ बड़े समतल मैदान नहीं होते वहा इसीलिए सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं। इसके बाद पूरे खेते की एक गहरी जुताई कर दें जिससे ज़मीन भुरभुरी हो जाए और वर्षा का पानी भी ज़मीन में भली प्रकार पहुंच सके। सपाट ज़मीन में अधिकतर वर्षा का पानी बह जाता है। यदि संभव हो तो पूरे खत में हरी खादवाली फसल, जैसे सनई आदि, बोकर जोत देने से भूमि को अच्छी खाद मिल जाती है। इसके बाद पूरी भूमि में पेड़-पौधे लगाने के स्थानों पर निशान लगाने से पहले, कागज पर उसका नक्शा बना लें जिससे वांछित जगहों पर आसानी से सही-सही निशान लग सकें। यह रेखांकन या ले-आडट वर्गाकार, षट्भुजाकार, आयताकार आदि कैसा भी हो सकता है किन्तु वर्गाकार रेखांकन सुगम और सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि में एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच का फासला और लाइन से लाइन के बीच का फासला एक समान होता है और आसपास के चार पेड़ों को सीधी रेखा से मिलाने पर एक वर्ग बन जाता है। निशान लगाना शुरू करने से पहले एक सीधी आधारभुजा डाल लेनी चाहिए। यह आधारभुजा पास की पक्की सड़क, अथवा इमारत या पास लगे हुए बाग, के समांतर डाली जा सकती है, अथवा भूमि का आकार देखकर उसके अनुसार डाली जा सकती है।
पेड़ों के बीच की दूरी
पेड़ों को उचित फासले पर लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राय: भूमि में अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लालच में लोग पेड़ पास-पास लगा देते हैं जबकि सच्चाई यह है कि निर्धारित दूर से कम दूरी पर पेड़ लगाने से उनको फैलने की जगह पूरी नहीं मिलती, और बढऩे पर वे आपस में मिल जाते हैं। घने बाग में पेड़ों को उपयुक्त मात्रा में धूप और हवा भी नहीं मिलती जो उनके उचित विकास और फलन के लिए जरूरी होती है। फलत: पेड़ों से अच्छी फसल नहीं मिलती। केवल चोटीवाले भाग में, जहाँ थोड़ी धूप तथा हवा पहुँचती है, वहां थोड़े-बहुत फल लगते हैं, जिनकी रखवाली करना और तोडऩा दोनों कठिन होता है। जानते हैं कुछ फलदार पेड़-पौधों के बीच कितना फासला होना चाहिए-
देशी आम                    40 फुट
कलमी आम                35 फुट
अमरूद                       25 फुट
नीबू/संतरा/किन्नू        20 फुट
लीची                           30 फुट
लुकाट                         25 फुट
पपीता                          8 फुट
कैसे लगाएं पेड़-पौधे?
पेड़ों लगाने के निशान ज़मीन पर लगा देने के बाद वहाँ तीन फुट चौड़े तथा तीन फुट गहरे गोल गड्ढे खोदने का काम जून तक कर लें, ताकि बरसात होने से पहले गड्ढों की मिट्टी को कम से कम 15-20 दिन हवा लग जाए। गड्ढों की मिट्टी में से कंकड़ पत्थर आदि निकाल कर उसमें लगभग 2 भाग सड़े गोबर की खाद मिला दें। गड्ढों में पानी भरने से मिट्टी बैठ जाती है, इसलिए गड्ढों को भरते समय मिट्टी को ज़मीन की सतह से लगभग दो इंच ऊँचा रखें। एक दो बार जब अच्छी वर्षा हो जाए, तब गड्ढों के बीचोबीच पौधे लगा दें। पौधे लगाते समय यह ध्यान रखें कि वे उसी गहराई तक लगे, जितना वह पहले क्यारी या गमले में लगा था। अधिक गहरा लगा देने से तना मिट्टी में दब जाता है और उसके सडऩे का अंदेशा रहता है। इसी प्रकार धरातल से ज्यादा ऊपर लगाने से पौधे की जड़ें खुली रह जाती हैं और उसे हानि पहुँचती है। यदि वर्षा न हो रही हो तो पौधे लगाने के बाद तुंरत पानी दें।
एक विशेष बात का हमेशा ख्याल रखें कि पौधे हमेशा किसी विश्वसनीय और प्रमाणिक नर्सरी या सरकारी पौधशाला से ही लें, चाहे उनका मूल्य कुछ अधिक देना पड़े। यदि शुरूआत ही गलत किस्मों से हो जाए तो नुकसान होना लाजमी है। फल आने पर जब मालूम पड़ता है कि खराब और गलत किस्मों के पेड़ लग गए हैं उस समय सिवा उन पेड़ों को निकालकर नए पेड़ लगाने के और कोई उपाय नहीं रहता और तब तक काफी समय और रुपया बेकार हो चुका होता है।
कैसे करें बाग की देखभाल
बाग लगाने के साथ आपका काम खत्म नहीं बल्कि शुरू होता है। इतनी मेहनत से लगाए गए बाग को एक छोटे बच्चे की परवरिश जितनी सार-संभाल चाहिए। जानते हैं बाग की देखभाल के तरीके।
लू एवं पाले से बचाव

गर्म हवाएं सदा पश्चिम से और ठंढी हवाएँ हमेशा उत्तर से चलती हैं। इन तेज, गर्म और ठंढी हवाओं को रोकने के लिए बाग की उत्तर और पश्चिम दिशा में ऊँचे बढऩे वाले पेड़ों की घनी पंक्ति लगा देनी चाहिए। इस पंक्ति को विंड ब्रेकर कहते हैं। हवा रोकने के लिए शीशम, देशी आम, जामुन आदि भी लगाए जा सकते हैं। इन पेड़ों का फासला लगभग 10-15 फुट तक रखा जाता है, जिससे वे घने होकर सीधे और लंबे बढ़ते रहें। लू एवं पाले से छोटे पेड़ों को बचाने के लिए गर्मी और सर्दी के मौसम में प्रत्येक पेड़ के चारों ओर फूस की छोटी टाट पूर्व दिशा में खुली लगाएं, जिससे पेड़ को धूप और हवा मिलती रहे। टाट्टियाँ केवल उन्हीं पेड़ों को बाँधते हैं जिन्हें लू एवं पाले से मरने का अंदेशा रहता है, जैसे आम, पपीता, लुकाट आदि। गरमी और जाड़ों में गहरी सिंचाई करने से भी लू और पाले से बचाव होता है।
जंगली जानवरों से रक्षा
बाग में जंगली जानवर, चौपाए आदि को रोकने के लिए बाग के चारों ओर कांटेदार बाढ़ लगाना आवश्यक है। इसका एक तरीका यह है कि चारों ओर लगभग तीन फुट गहरी एक खाई खोदें और उसकी मिट्टी बाग के अंदर की ओर खाई के किनारे एक चौड़ी और ऊँची मेड़ के रूप में जमा दें। यह खाई और ऊँची मेड़ अच्छी रोक का काम करती है। आजकल काँटेदार तार लगाने का भी प्रचलन है, पर यह जरा मंहगा सौदा है। यदि इस मेड़ के ऊपर थूहर या नागफनी आदि लगा दें तो यह ज्यादा रक्षात्मक है। इसके अलावा बाग के चारों और काँटेदार घनी झाड़ी जैसे खट्टी, बबूल आदि भी लगा सकते हैं। बाग की बाड़ से आप अतिरिक्त कमाई भी कर सकते हैं जैसे करौंदा या सागरगोटा जिसे कट-करंज भी कहते हैं लगा कर। करौंदा आचार आदी डालने के काम आता है तथा सागर गोटे के बीज दो-अढ़ाई सौ रूपए किलों तक बिक जाता है।
फलों को हानि पहुँचाने वाले जीव-जतुंओं, पक्षी एवं बंदर आदि से रक्षा के लिए आदमी ही रखना पड़ता है, जो पटाखे, गुलेल आदि चलाकर फसल की रक्षा करता है।
पेड़ों की कटाई छँटाई
जाड़े में पत्ती गिरानेवाले कुछ पेड़ों, जैसे फालसा, अंजीर, शहतूत आदि की सालाना कटाई-छँटाई करनी पड़ती है। इनकी छँटाई करने से नई शाखाएँ खूब फूटकर निकलती हैं और फल भी अच्छे लगते हैं। सालाना कटाई न करने से इनमें केवल गिनी चुनी शाखाएँ निकलती हैं, जिनमें थोड़े से फल लगते हैं। इनकी कटाई-छँटाई उस समय करते हैं, जब जाड़ों में ये पत्ती गिरा देते हैं।
पेड़ लगाने के बाद प्रारंभ के दो तीन साल तक सभी पेड़ों को सुंदर और सुदृढ़ बनाने के लिए कटाई-छँटाई की आवश्यकता होती है। भूमि से लगभग दो तीन फुट की ऊँचाई तक तने को साफ कर लेना चाहिए। तने के ऊपरी भाग में तीन या चार मजबूत भिन्न भिन्न दिशाओं में बढ़ती हुई शाखाओं को चुन लेना चाहिए और केवल उनको ही बढऩे देना चाहिए अन्य शाखाओं को तने के पास से काट देना चाहिए।
जैसे-जैसे पेड़ बढ़ते जाएँ, उनके थाले बढ़ाते जाना चाहिए। प्रति वर्ष थालों की गोड़ाई करके उनमें खाद देनी चाहिए। यह कार्य अक्टूबर तथा नवंबर के महीने में करें। बाग की सफाई का सदा ध्यान रखें। जंगली घास फूस साफ करते रहें। उचित सिंचाई का विशेष ध्यान रखें विशेषकर ग्रीष्म काल और फल लगने के बाद। किसी भी बीमारी अथवा कीड़ों के लगते ही उनको रोकने के लिए किसी अनुभवी बाग मालिक या फल-वैज्ञानिक की सलाह से उचित दवा का छिड़काव करें।

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