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Wednesday, March 14, 2012

नहर का निर्माण फिर फिर...

इन दिनों गंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में क्षेत्र की जीवन-रेखा मानी जाने वाली तीनों नहरों गैंग कैनाल, इन्दिरा गांधी नहर और भाखड़ा नहर में अप्रैल 2012 में प्रस्तावित बंदी का कड़ा विरोध हो रहा है। वैसे तो यह नहरबंदी हर साल 15 दिनों के लिए इसी समय होती है, पर इस साल नहर की हालत कुछ ज्यादा ही खराब होन से यह बंदी 40 से 90 दिन तक होने वाली है। किसान नेताओं का मानना है कि इस बंदी से प्रदेश के आठ जिलों में किसानों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और तीन माह बाद होने वाली नरमा-कपास, ग्वार-मूंग आदि की बिजाई भी नहीं हो पाएगी। इसके विपरीत सरकार का कहना है कि नहर की लाइनिंग का काम होने से किसानों को ही फायदा होगा। उनका कहना है कि बंदी से किसानों पर फर्क तो पड़ेगा, लेकिन उतना नहीं जितना किसान या विपक्ष वाले बता रहे हैं।
इन तीनों नहरों की मरम्मत के लिए केंद्र 1352 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ है जिसे चार साल में खर्च किया जाना है। पहले साल बंदी का समय कुछ अधिक रहेगा, उसके बाद इसकी अवधि कम रहेगी। सरकार का कहना कि अगर अब यह मरम्मत का काम नहीं हुआ तो किसानों को उतना पानी भी नहीं मिलेगा जितना अभी मिल रहा है, और इस्तेमाल न होने पर केंद्र द्वारा जारी बजट भी लेप्स हो जाएगा। मजबूरी यह भी है कि पंजाब क्षेत्र में तीस किलोमीटर का एक बड़ा हिस्सा तो इतना खराब है कि कभी भी टूट सकता है। इसके विपरीत किसानों का कहना है कि यह बंदी सर्दी में ली जा सकती है। गर्मी के मौसम में उनके बागों को दो माह के बाद पानी मिलेगा जिसकी वजह से सभी फलों की उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।
तीसरे पक्ष के तौर पर पंजाब के सिंचाई मंत्री जनमेजासिंह सेखों भी हैं, जिनका कहना है कि भाखड़ा मुख्य नहर जिसके जरिए मुख्यत: हरियाणा और राजस्थान को पानी जाता है की हालत बेहद खस्ता है और चूंकि इस नहर से इन दोनों राज्यों को ही पानी मिलता है इसलिए इन्हें ही इसकी मरम्मत के लिए राशि भी देनी होती है और साथ ही इसे बंद भी करवाना होता है। उनका कहना है कि नहर की हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि कभी टूट सकती है। नहर कई जगह से थोड़ी थोड़ी टूटने के कारण रोजाना होने वाली दुर्घटनाओं का कारण बन रही है। पंजाब सरकार इसकी मरम्मत का पैसा बजट में नहीं रख रही है, क्योंकि उसे इस नहर से बहुत ही कम पानी मिलता है। इस नहर का नियंत्रण बीबीएमबी (भाखड़ा ब्यास मैनिजमेंट बोर्ड)के पास है, इसलिए जब तक दोनों राज्य बीबीएमबी की मीटिंग में नहर बंद करने के लिए सहमत होंगे तब तक इसकी मरम्मत नहीं की जा सकती है।
सारी स्थिति जानने के बाद लगता है कि सरकार की राय मान लेने में ही समझदारी है, क्योंकि कभी न कभी तो यह दिन आना ही था। पर सवाल उठता है कि यह दिन आया ही क्यों? हर साल होने वाली 15 से 20 दिन की बंदी में सरकार क्या करती है? नहरों के बनने से लेकर आज तक इनकी मरम्मत और रख-रखाव पर अरबों रूपया खर्च होता रहा है, फिर भी नहरों की स्थिति पहले से ज्यादा बिगड़ी ही है। नहरों का यह हाल देखकर हरिवंशराय बच्चन की एक कविता याद आती है-नीड़ का निर्माण फिर फिर। जिसका सार यह कि पंछियों के घोंसले उजड़ते रहते हैं और वे बिना उसकी परवाह किए बार-बार उन्हें बनाते रहते हैं। लेकिन यहां मामला बिलकुल उल्ट है। यहां नहरें योजनाबद्ध तरीके से तोड़ी जाती हैं, उन्हें कमजोर होने दिया जाता है या जानबूझ कर तोड़ा जाता है, ताकि इन्हें बार-बार इनकी मरम्मत का काम चलता रहे। सिंचाई विभाग और ठेकेदारों पर इल्जाम है कि नहर बने न बने, इनके घर बन जाते हैं। किसान भी इस बहती गंगा में हाथ धो ही लेते हैं, या मौका मिलते ही नहा भी लेते हैं। जैसे नहर की जमीन और पटरियों पर नाजायज ढ़ंग से मंदिर, गुरूद्वारे और ढाणियां बनाकर।
भ्रष्टाचार और नहरों का तो चोली-दामन का साथ है, मुद्दा था लम्बी नहरबंदी की तैयारी और मरम्मत का। तीन महीने से भी कम समय रह गया है प्रस्तावित नहरबंदी में और तैयारी के नाम पर अब तक विभाग ने यह तय नहीं किया है कि इस बंदी के दौरान किस-किस नहर की कहां से कहां तक मरम्मत होनी है। अभी तक बंदी के बिना होने वाले काम भी आरम्भ नहीं हुए। नहर के किनारों यहां तक कि लाइनिंग के अंदर खड़े पेड़ों को भी काटा नहीं गया है। किनारों पर मिट्टी भी नहर बंद किए बिना डाली जा सकती है, उसकी भी अब तक न तो निविदाएं जारी हुई है और न ही नाजायज कब्जाधारियों को बेदखली के नोटिस ही दिए गए हैं। अगर ये शुरूआती काम ही अब तक नहीं हुए तो क्या बंदी आने के बाद शुरू किए जाएंगे? विभाग के काम करने का तरीका देखकर लगता नहीं है कि वह इस लम्बी बंदी का कोई लम्बा फायदा लेना चाहता है। यानी एकबार फिर वही लीपापोती और वही नहरों का लगातार टूटना। ऐसे में कोई व्यंग्यकार कवि यदि यह कहे कि- नहर का निर्माण फिर फिर, भ्रष्टों का आह्वान फिर फिर..., तो कुछ बेजा नहीं होगा।

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