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Monday, March 19, 2012

जल प्रबंधन किसानों के हाथ में: कितना सार्थक?

हमेशा की तरह विदेश से कुछ साल पहले एक विचार आया कि नदियों से पानी खेतों और गावों तक लाने के लिए तकनीकी लोगों और पैसे की जरूरत पड़ती है, उसके बाद तो केवल साफ-सफाई और मरम्मत का काम रहता है जिसके लिए इंजीनिअरों की फौज की क्या जरूरत है? दूसरा एक इल्जाम था, जो सिंचाई विभाग पर हमेशा से लगता आया है कि वहां कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है। इन दोनों बातों का एक ही हल सूझा कि नहर के रख-रखाव का जिम्मा क्यों न उसके इस्तेमाल करने वालों को ही सौंप दिया जाए? वह भी तब, जब विश्व बैंक इसके लिए करोडों रूपए की वित्तिय सहायता दे रहा हो।
देशभर में एक कानून बना कर सिंचाई प्रणाली के प्रबन्धन में कृषकों की भी सहभागिता तय करदी गई। इस नए और अभिनव प्रयोग का क्या हश्र हो रहा है यह जानने से पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि जरा से अधिकार मिलते ही आम आदमी भी उसी रंग में रंगा जाता है जिससे उसे अब तक नफरत थी। इसलिए सारे देश की बात करने की बजाय, उदाहरण के लिए केवल राजस्थान की ही बात कर लेते हैं, थोड़ा-बहुत कम-ज्यादा करके सारे देश का हाल सामने आ ही जाएगा।
किसान किस तरह नहरों और सिंचाई व्यवस्था सभांलने वाला बनेगा इस पर बात करने से पहले एक छोटी सी जानकारी विश्व बैंक से मिली सहायता राशि की। राजस्थान में 13 परियोजनाओं को विश्व बैंक द्वारा 157.97 लाख रूपये धनराशि उपलब्ध करायी जाकर माईनरों के पुनरूद्धार का कार्य कराया जा चुका है। इसी प्रकार रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डिवलपमेंट फण्ड की एक योजना के अन्तर्गत 19 माइनरों हेतु 235.74 लाख रूपए नाबार्ड तथा एक को राजाद परियोजना के अन्तर्गत 89.62 लाख रूपए धनराशि उपलब्ध करवायी गई। इसके अतिरिक्त 219 नव गठित जल प्रबन्धन समितियों को सन 2000-2001 में 260.61 लाख रूपए विश्व बैंक की सहायता से उपलब्ध करवाये गए, जिससे समितियों ने माइनर्स पर अति आवश्यक कार्य जैसे जंगल सफाई, सिल्ट सफाई, नहर के किनारों के कटाव को भरने के अतिरिक्त कुछ निर्माण और मरम्मत कार्य करवाए।
अब बात करते हैं जल प्रबंध समितियों की। राजस्थान में सबसे पहले यह प्रयोग चम्बल सिंचाई क्षेत्र में किया गया। सिंचाई प्रणाली प्रबन्धन, नहरी तंत्र, रख-रखाव एवं जल वितरण किसान संगठनों के माध्यम से करवाने हेतु वर्ष 1992 में 354 जल प्रबन्धन समितियों का गठन किया गया। इनमें से 82 समितियां राजस्थान सहकारी संस्था अधिनियम 1965 एवं 272 समितियां राजस्थान संस्था अधिनियम 1958 के तहत गठित की गई। वर्तमान में देश के 300 से ज्यादा जिलों में 56 हजार से ज्यादा जल उपयोक्ता संघ काम कर रहे हैं। सिंचाई प्रणाली के प्रबंधन में किसानों की सहभागिता लागू करने, वाटर यूजर एसोसिएशन गठित करने, एसोसिएशन के चुनाव करवाने, नहरों एवं वितरिकाओं के हेड से टेल तक पानी पहुंचाने का कार्य जल उपभोक्ता संगम के माध्यम से करवाने के लिए राज्य में राजस्थान सिंचाई प्रणाली के प्रबंध में किसानों की सहभागिता अधिनियम 2000 तथा नियम 2002 के तहत किस तरह काम होता है, के बारे में संक्षेप में जानकारी ऐसे है-
मोघे से शुरूआत
यह तो ज्ञात ही है कि एक चक के लिए केवल एक ही मोघा होता है अत: प्रत्येक तीन-चार मोघों पर एक समिति का गठन किया जाता है जिसमें उन सभी चकों के सारे किसान सदस्य होते हैं। अगर एक किसान की जमीन कई मोघों  के नीचे आती है तो वह उन सभी समितियों का सदस्य होगा। सभी सदस्य मिलकर एक अध्यक्ष चुनेंगे, जिसका कार्यकाल तीन वर्ष होता है। यह चुनाव आम चुनावों की तरह ही होता है, तथा किसी पदाधिकारी के पुन: निर्वाचन पर कोई प्रतिबंध नही है। अध्यक्ष तथा कार्यकारिणी के छह सदस्य आपसी सहमति से एक सचिव का चयन करते हैं।
इन समितियों का मुख्य काम है सहकारिता की भावना को प्रोत्साहित करते हुए क्षेत्र के अन्तिम छोर तक समान जल वितरण को सुनिश्चित करना तथा इस संबंध में उत्पन्न होने वाले विवादों का समाधान करना। अपने क्षेत्र के सिंचाई साधनों का रख-रखाव और बकाया तथा जुर्माने की वसूली का काम भी इसी समिति को करना होता है।
अपनी नहर स्तर पर
एक छोटी नहर (माइनर) से पर कई मोघे होते हैं। मोधा स्तर के सारे अध्यक्ष मिलकर उस माइनर के संचालन व देख-रेख के लिए एक और समिति का गठन करते हैं। इस समिति के गठन में सिंचाई विभाग, इस नहर के सभी मोघा अध्यक्ष, ग्राम पंचायतों की जल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष, इस माइनर क्षेत्र के दो प्रगतिशील किसान, जिन्हें जिलाधिकारी द्वारा नामित किया जाता है आदि मिलकर करते हैं।
इस जल उपभोक्ता संगम का काम है पैतृक नहर से जल प्राप्त करके कमाण्ड क्षेत्र में समान रूप से वितरण करना तथा माइनर निर्माण कार्यो के रख-रखाव, अभिलेखन, आदि। इसके अतिरिक्त जल उपभोक्ता समितियाँ उपभोग किये गये जल का जल शुल्क स्वयं निर्धारित कर उसकी वसूली एवं अनुरक्षण संबंधी कार्य करने के लिए भी उत्तरदायी होती हैं।
हैड या मुख्य नहर स्तर पर 
माइनर जिस मुख्य नहर से निकलती है उसके रख-रखाव के लिए भी एक समिति बनाई जाती है जिसके अध्यक्ष का चुनाव सभी छोटी नहरों के अध्यक्ष मिलकर करते हैं। यह अध्यक्ष उस मुख्य नहर का प्रोजेक्ट चेअरमैन कहलाते हैं, जैसे गंग कैनाल प्रोजेक्ट चेअरमैन। यह प्रबंधन समिति की कार्यकारिणी में माइनर स्तर की जल उपभोक्ता समितियों के अध्यक्ष, जिलाधिकारी द्वारा नामित कमाण्ड क्षेत्र के दो प्रगतिशील किसान और अधिशासी अभियन्ता द्वारा नामित एक विभागीय कर्मचारी।
क्या रहेगी व्यवस्था?

पहली नजर में यह व्यवस्था कितनी अच्छी लगती है, हैड से टेल तक सारे किसान अपने-अपने क्षेत्रों का ध्यान रखेंगे, पानी बांटेगे, मोघों, माइनरों, नहरों और हैडों के साथ मुख्य नहर परियोजना तक को सभालेंगे, उनकी मरम्मत करवाएंगे, आबीयाना वसूलेंगे। साथ ही सरकारी कर्मचारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार से छुटकारा मिल जाएगा।
इतना ही नहीं इन जल उपभोक्ता समितियों को केवल पानी व नहर से सम्बन्धित बिन्दुओं तक ही सीमित न रखा गया, बल्कि इन्हें विकास तथा गरीबी उन्मूलन की विभिन्न योजनाओं से भी जोड़ा गया। कृषि विभाग, उद्यान विभाग, पशुपालन विभाग, भूमि विकास एवं जल संसाधन विभाग, लघु सिंचाई विभाग, सहकारिता विभाग, ग्रामीण विकास विभाग तथा मत्स्य पालन विभाग आदि को भी इस योजना में शामिल किया गया।
राजस्थान सरकार ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी कर राजस्थान सिंचाई प्रणाली के प्रबंध में कृषकों की सहभागिता नियम-2002 को संशोधित किया है। ये नियम राजपत्र में प्रकाशन की तिथि से प्रवृत्त होंगे तथा इन नियमों का अब नाम होगा-राजस्थान सिंचाई प्रणाली के प्रबंध में कृषकों की सहभागिता (संशोधन) नियम 2010। इस नए संसोधन से संग्रहित जल प्रभार कर में कृषकों के संगठन का अंश संग्रहित जल प्रभार या कर का 50 प्रतिशत हो जाएगा।
परेशानी क्या है?

किसान तो हमेशा से यही चाहते थे कि जल वितरण और नहरों की सारी जिम्मेदारी उनके हाथ में आ जाए। ऐसा हुआ भी, फिर अब परेशानी क्या है? हेड से टेल तक का सारा नियंत्रण एक कानून के साथ किसानों के हाथ में आने के बाद सरकारी कारिंदों और उन किसानों में कोई ज्यादा फर्क नहीं रह गया। कुछ जगहों पर तो हालात और ज्यादा बदतर हो गए। इन समितियों और संघों के माध्यम से छुटभइया नेताओं को अपनी राजनैतिक दुकान चलाने के अवसर मिल गए। गंगनहर के पूर्व प्रोजेक्ट चेअरमैन गुरबलपाल सिंह का मानना है कि ये समितियां अब राजनीति का अखाड़ा बन चुकी हैं। वे बताते हैं कि मोघे स्तर पर चल रही राजनीति व्यक्तिगत स्तर पर उतर आई है। गुरबलपाल को यह श्रेय जाता है कि गंगनहर पर चुनाव और समितियां उनके प्रयासों से 2002 में ही बन गई जबकि भाखड़ा नहर पर दस साल बाद भी अध्यक्ष नहीं बना है। नोहर से भाजपा विधायक अभिषेक मटोरिया ने इन समितियों के बारे में अनभिज्ञता प्रकट की तो पीलीबंगा से कांग्रेस के विधायक आदराम मेघवाल का कहना है कि देश का किसान अभी तक परिपक्व नहीं हुआ, अगर वह नहर सभांले तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है? पर आज के किसान से अपना घर ही नहीं सभंल रहा वो गांव की नहर क्या संभालेगा। भादरा से निर्दलिय विधायक और संसदीय सचिव जयदीप डूडी का कहना है कि किसान मूलत: अशिक्षित है, उसे यह सारी व्यवस्था समझने में समय लगेगा। अभी सभी अध्यक्षों के पास कार्यालय और सहायक नहीं है, समय जरूर लगेगा पर अंत में यही होना है कि किसान अपनी नहरों की जिम्मेदारी खुद संभाले।
सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता दर्शनसिंह भी इस स्थिति से सहमत हैं, उनका कहना है कि-स्थिति में कोई अंतर नहीं आया है, उल्टा हालात ज्यादा बिगड़े हैं। सादुलशहर तहसील के भागसर गावं में गंगनहर और भाखड़ा नहर दोनों से पानी लगता है पर वहां के सरपंच नंदलाल इस तरह किसी समिति के बारे कुछ नहीं जानते, कुछ ऐसा ही हाल पदमपुर तहसील के 11 ईईए गावं के सरपंच बृजपाल का है। घड़साना जहां कुछ साल पहले पानी की समस्या के लिए आवाज उठाने वाले किसानों पर सरकार को गोलियां चलानी पड़ी, कई दिनों तक क्षेत्र में कफ्र्यू लगा रहा, वहां के जनप्रतिनिधी भी इन समितियों के बारे में उतने ही अनभिज्ञ हैं, जितने बाकी क्षेत्रों के। इस अंदोलन के हीरो रहे क्षेत्र के विधायक पवन दुग्गल स्वीकार करते हैं कि किसानों में जागरूकता की कमी है। दुग्गल का सुझाव है कि सरकार का इसके लिए और ज्यादा प्रयास करने चाहिए। दुग्गल के क्षेत्र की पंचायत 17 केएनडी के सरपंच सूरजपाल, 10 डीओएल के केवलसिंह, 2 आरकेएम के अली शेर से हुई बात का परिणाम भी वही है जो बाकी क्षेत्रों का है।
सरकारी स्तर कुछ प्रयास हो रहे हैं, जो समितियां बन जाती हैं उन्हें काम करने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जहां चुनाव नहीं हुए वहां करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सिंचाई राज्य मंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर जब इस पूछा गया कि अब तक सभी नहरों पर समितियां क्यों नहीं बनी? के जवाब में उन्होंने कहा हर चीज में समय लगता है। गंग नहर का प्रोजेक्ट चेअरमैन बने दस साल हो गए पर अब तक भाखड़ा नहर पर यह व्यवस्था अब तक क्यों नहीं है? के उत्तर में उनका कहना था कि यह काम किसानों का है, वे प्रयास करें। जिस क्षेत्र में नहरों की देख-रेख का काम किसानों के हाथ में आ गया है वहां से भी अव्यवस्था की शिकायतें आ रही है, क्या वजह है? इस पर मंत्री जी का कहना था कि किसान सही लोगों का चुनाव करे। अब तो किसानों के लिए वसूली का कानून भी बना दिया गया है, किसान वसूली करके आधा पैसा नहरों की मरम्मत पर लगाए। अपने अधिकरों के प्रति सचेत रहे।

1 comment:

  1. The key is to have more advanced technology like drip irrigation.

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