Advertisement

Thursday, July 26, 2012

ऊगाना ही नहीं, बचाना भी आना चाहिए

कहा जाता है कि भारत में खेती का इतिहास करीब 10 हजार साल पुराना है। कुछ इतिहासकार तो यहां तक दावा करते हैं कि दुनिया को खेती करना सिखाया ही भारत ने है। पता नहीं इन दावों में कितनी सच्चाई है, पर यह बात सवा-सोलह आने सच है कि अतीत की गौरव-गाथा हारे हुए लोग ही गाते हैं। वर्तमान भारत उपज के मामले में बड़े देशों से तो छोडि़ए पाकिस्तान, बंग्लादेश और बर्मा तक से पीछे है। इन देशों में मौजूद संसाधन और राजनैतिक हाताल को देखते हुए कई बार आश्चर्य भी होता है कि ये भी हम से आगे हैं? साथ ही भण्डारण की स्थिति देखते हुए लगता है कि चलो अच्छा है, कम पैदा होता है इसलिए कम ही खराब होता है।
अन्न ऊपजाना और उसे सहेज कर रखना दोनों बिलकुल अलग ही विज्ञान हैं। हम दुनिया भर से उपज बढ़ाने की तकनीक तो ले आए, पर उपजाए अन्न को सहेजने की जरूरत ही नहीं समझी। जिस समय हम विदेशों से अन्न उत्पादन तकनीक ला रहे थे, उस समय खाने के लाले पड़े हुए थे, अन्न सहेजना तो हमारे ख्वाब में ही नहीं था। आश्चर्य तो जब होता है जब 40 साल बाद भी हम उसी वहम में जिन्दां हैं। माना हमारे देश की कृषि मानसून और कई अन्य कारणों से अनिश्चित रहती है, अन्न की उपज पर्याप्त न होने पर हमें विदेशी मुद्रा खर्च कर विदेशों से अन्न मांगने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
हमारी कई दोषपूर्ण नीतियों की वजह से हम विश्व के 20-22 देशों के ही उपर हैं। कृषि क्षेत्र में पर्याप्त धन व्यय करने के पश्चात हमारी फसल उत्पादन तो बढ़ा है, और गत कुछ वर्षों में उत्पादन आशातीत भी रहा है परन्तु अभी दो साल पहले तक टनों अन्न वर्षा में भीग कर सड़ गया था और कमोबेश यही स्थिति आज भी है। तब सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाई कि यदि गेहूं को रखने के साधन आपके पास नहीं तो गरीबों में बाँट दो। विडम्बाना ही है कि जितना अन्न हमारे यहाँ व्यर्थ हो जाता है उतनी तो कनाडा जैसे देश की कुल उपज है। अपनी इस राष्ट्रीय समस्याओं के लिए एक सीमा तक तो हम खुद ही जिम्मेदार हैं। विगत 6-7 सालों से यह गलती हम बार-बार दोहरा रहे हैं तभी तो कहा गया कि एक या दो बार हो जाए तो गलती कहलाती है, परन्तु यदि बार बार ऐसा हो तो वह अक्षम्य अपराध है।

No comments:

Post a Comment